एशिया की पहली महिला रेल चालक सुरेखा यादव: 36 साल की गौरवशाली यात्रा का समापन “लोहे के पटरियों पर लिखा इतिहास”

“भारत की बेटी जिसने लोहे की पटरियों पर बदल दी सोच: सुरेखा यादव” की कहानी। आजाद भारत न्यूज़ के साथ”
भारतीय रेलवे के इतिहास में 1988 का वर्ष मील का पत्थर था, जब महाराष्ट्र के सतारा जिले की एक साधारण ग्रामीण पृष्ठभूमि से आईं सुरेखा यादव एशिया की पहली महिला ट्रेन चालक बनीं। उन्होंने यह साबित किया कि अगर हौसला बुलंद हो तो कोई भी सपना बड़ा नहीं होता।
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
सुरेखा यादव का जन्म सतारा, महाराष्ट्र में हुआ। वे एक किसान परिवार से थीं और बचपन से ही पढ़ाई के साथ तकनीकी विषयों में रुचि रखती थीं। उन्होंने पॉलिटेक्निक कॉलेज से इंजीनियरिंग डिप्लोमा किया और फिर रेलवे की परीक्षा पास की। उस समय तक रेल चालक का पेशा पूरी तरह पुरुषों के कब्ज़े में था, लेकिन सुरेखा ने परंपराओं को तोड़ते हुए नया इतिहास रचा।

रेलवे में योगदान और उपलब्धियाँ
1988 में मुम्बई डिवीजन, सेंट्रल रेलवे से ट्रेन ड्राइवर के रूप में नियुक्त हुईं।
एशिया की पहली महिला ट्रेन चालक का दर्जा हासिल किया।
उन्होंने पैसेंजर, मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों को सफलतापूर्वक संचालित किया।
2011 में देccan Queen Express (मुंबई-पुणे के बीच चलने वाली प्रतिष्ठित ट्रेन) को चलाने वाली पहली महिला चालक बनीं।
कई बार रेलवे की तरफ से उन्हें सम्मानित और पुरस्कृत किया गया।

महिला सशक्तिकरण की मिसाल
सुरेखा यादव ने न केवल रेलवे में बल्कि पूरे समाज में महिलाओं के लिए नई राह खोली। उन्होंने यह दिखाया कि कठिन समझे जाने वाले कार्यक्षेत्र में भी महिलाएं पुरुषों से पीछे नहीं हैं। उनकी यह यात्रा असंख्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई।
36 वर्षों की शानदार सेवा के बाद विदाई
2025 में उन्होंने रेलवे से सेवानिवृत्ति ली। यह विदाई सिर्फ एक कर्मचारी की सेवानिवृत्ति नहीं, बल्कि एक युग का अंत और नए युग की शुरुआत है, जहां महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़कर इतिहास लिख रही हैं।
सुरेखा यादव की कहानी भारतीय रेलवे और देश की करोड़ों महिलाओं के लिए आत्मविश्वास, साहस और संघर्ष की अमिट मिसाल है।

आजाद भारत न्यूज़
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